बेवजह अच्छा हूं मैं,
इस लीये तन्हा हूं मैं.
मैं मेरे खिलाफ हुं,
बेवफा कितना हूं मैं.
जिंदगी तो है नहीं,
खाक क्या जिंदा हूं मैं!
खेलते है मुझसे सब,
क्या अभी बच्चा हूं मैं?
फासला तो है बहोत,
साथ क्यूं चलता हूं मैं।
सोचता रहता हूं ये,
सोचता क्या क्या हूं मैं।
फासला तो है बहोत,
साथ क्यूं चलता हूं मैं।
सोचता रहता हूं ये,
सोचता क्या क्या हूं मैं।
बूत सा दिखता सही,
हां मगर इंसा हूं मैं.
विनोद नगदिया (आनंद)
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