कभी बारिश की मौसम में किसीकी याद आती है,
न जाने हर खुशी-गम में उसीकी याद आती है।
न जाने हर खुशी-गम में उसीकी याद आती है।
ज़हन में आता है हर शख़्स इस बारिश की मौसम में,
दिये है ज़ख़्म जिस जिस ने,सभीकी याद आती है ।
नज़र वो बेबसी से कह रही थी अलविदा जिस दिन,
फ़िज़ाँ में जो थी उस दिन वो नमीं की याद आती है।
शहरकी बारिशों में भी ये रास्ते साफ दिखते है,
जहाँ हम खो गये थे वो गली की याद आती है।
कहाँ से लायेंगे "आनंद" ऐसी चश्म-ए-पुर-नम,
कि जिसमें बारिशों जैसी खुशी की याद आती है।
विनोद नगदिया (आनंद)
चश्म-ए-पुर-नम =डबड़बी आँखे
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