રવિવાર, જુલાઈ 02, 2023

बारिश

कुछ ना कुछ तो ज़रूर कर जाती है ये बारिश, 
जब किसी भी गाँव या शहर जाती है ये बारिश । 

कोई न कोई गली या नुक्कड़ के बंद दरीचें मे, 
ज़ख़्म कर देती है या भर जाती है ये बारिश। 

निकलती है कोई हसीना बिखरी हुई ज़ुल्फ़ लिये, 
क्या अदा क्या चाल से निखर जाती है ये बारिश। 

पूरा का पूरा निकल जाता है बाहर सहम कर, 
जब किसी घर के भीतर जाती है ये बारिश। 

बंध कमरोमें कभी भर देती है आग कभी नमीं, 
क्या से क्या फिर तो वहाँ कर जाती है ये बारिश। 

देखकर अंजाम अपने  करतूतों का भी कभी, 
शर्म से लौट समंदर जाती है ये बारिश। 

किसीका दर्द किसीकी दीवानगी देखकर, 
टूटकर आखिर बिखर जाती है ये बारिश। 

विनोद नगदिया (आनंद) 

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