રવિવાર, નવેમ્બર 26, 2023

ओले

दो चार बुंदोसे शुरू होती है
और
बर्फके ओले बनकर गिरती है मुजपे
यादें तेरी।
कुछ लगती भी है, थोड़ा दर्द भी देती है,
मगर ठंडक बहोत देती है।
बहोत देर तक ठंड  ठंड सर्द हवाओंसी
तेरी यादें मेरे तन बदनको जकड़ लेती है,
और
मैं ठिठुर सा जाता हूं,
कंबल ओढ़ लेता हूं,
और सिकुड़के सो जाता हुं,
इक रातके लिए तेरी यादों की 
बारिश से बचकर।

विनोद नगदिया (आनंद)


ટિપ્પણીઓ નથી: